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संस्कृत पाठ 5

विभक्ति

एक बार फिर से आप सब का एक नए पाठ मे स्वागत है। इस पाठ में हम विभक्ति के बारे मे सीखेंगे।

संस्कृत संगीत के समान है। यह भाषा धारा स्वरूप बहती है। संस्कृत भाषा मे आप किसी शब्द को वाक्य के अन्दर किसी भी जगह पर रख सकते हैं, वाक्य का मतलब नहीं बदलता।

उदाहरण के तौर पर –

संस्कृत संस्कृत हिन्दी
अहं गच्छामि गच्छामि अहं मै जाता हूँ।
युवाम् पठथः पठथः युवाम् हम सब पढते हैं।
सा वदति वदति सा वह बोलती है।

हमारे ग्रन्थों की तरफ आप गौर करें तो सभी किसी ना किसी तरह की कविता मे बद्ध हैं। किसी शब्द को वाक्य के अन्दर किसी भी जगह पर रखना कविता रचने मे बहुत सहायक है। क्रमचय और संयोजन (Permutation and Combination) की कल्पना कीजिए। कवियों के लिए तो यह आदर्श भाषा हो गई। J

अब हम हिन्दी का एक उदाहण लेकर देखते है। नीचे दिए गए वाक्यों को ध्यान से देखें।

उदाहरण 1

  1. मै कृष्ण के घर जाता हूँ।
  2. जाता कृष्ण घर हूँ मै के।
  3. हूँ मैं कृष्ण के जाता घर।

सिवाए 1 के सभी वाक्य अर्थहीन हैं। किसी किसी वाक्य का तो अर्थ ही बदल जाता है जैसे, निम्नलिखित वाक्यों को देखें: –

उदाहरण 2

  1. दशरथ का पुत्र राम है।
  2. राम का पुत्र दशरथ है।

इसका बहुत छोटा सा करण है। संज्ञा(Noun) और पूर्वसर्ग(preposition) अल्ग अल्ग शब्द हैं। अगर हम ऊपर दिए गए राम के उदाहरण मे ‘दशरथ’ और ‘का’ को मिला दें: –

  1. दशरथका पुत्र राम है।
  2. राम पुत्र है दशरथका।
  3. है दशरथका पुत्र राम।
  4. पुत्र है राम दशरथका।

देखा आपने, पूर्वसर्ग को संज्ञा के साथ मिलाने से वाक्य का मतलब नही बदलता, हम शब्द की जगह के बन्धन से मुक्त हो जाते हैं। शब्द वाक्य मे कही भी प्रयोग किया जा सकता है।

यही संस्कृत मे भी किया गया है। संस्कृत में शब्द को पूर्वसर्ग के साथ मिला दिया गया है। फिर से एक बार ऊपर दिए गए उदाहरणो को देखें।

उदाहरण 1

कृष्णके = कृष्णस्य

घर को = गृहं

कृष्णस्य और गहं संस्कृत की विभक्तियाँ हैं।

हिन्दी संस्कृत
मै कृष्ण के घर जाता हूँ। अहं कृष्णस्य गृहं गच्छामि
जाता कृष्ण घर हूँ मै के गच्छामि कृष्णस्य गृहं अहं
हूँ मैं कृष्ण के जाता घर अहं कृष्णस्य गच्छामि गृहं

इन सभी संस्कृत वाक्यों का अर्थ है “मै कृष्ण के घर जाता हूँ।”

उदाहरण 2

राम = रामः

दशरथका = दशरथस्य

रामः और दशरथस्य संस्कृत की विभक्तियाँ हैं।

हिन्दी संस्कृत
दशरथका पुत्र राम है। दशरथस्य पुत्र रामः अस्ति
राम पुत्र है दशरथका। रामः पुत्र दशरथस्य अस्ति
है दशरथका पुत्र राम। अस्ति दशरथस्य पुत्र रामः
पुत्र है राम दशरथका। पुत्र अस्ति रामः दशरथस्य

इन सभी संस्कृत वाक्यों का अर्थ है “राम दशरथ का पुत्र है।”

तो देखा आपने संस्कृत मे आप विभक्तियों की मदद से किसी भी शब्द को किसी भी जगह वाक्य मे प्रयोग कर सकते हैं। वाक्य का अर्थ और अभिप्राय नही बदलता।

हम एक एक कर कर इन विभक्तियों के बारे मे पढेंगें।

नीचे दिए गए राम (अकारान्त पुंलिङ्ग) की विभक्तियों की तालिका देखिए । इसी प्रकार उकारान्त, इकारान्त, नपुसंकलिङ्ग, स्त्रीलिङ्ग की विभक्तियाँ भी होती हैं। घबराइए नही हम एक एक कर कर इन विभक्तियों को पढेंगे।

राम (अकारान्त पुंलिङ्ग)

एकवचन दिव्वचन बहुवचन
प्रथमा रामः रामौ रामाः राम (ने)
द्वितीया रामम् रामौ रामान् राम को
तृतीया रामेण रामाभ्याम् रामैः राम से, के साथ
चतुर्थी रामाय रामाभ्याम् रामेभ्यः राम को, के लिए
पञ्चमी रामात् रामाभ्याम् रामेभ्यः राम से, में से, पर से
षष्ठी रामस्य रामयोः रामाणाम् राम का, की, के
सप्तमी रामे रामयोः रामेषु राम मे, पे, पर
सम्बोधन हे राम हे रामौः हे रामाः हे राम, अरे, हो, भोः

संस्कृत पाठ 4

    पिछले पाठ में हम ने गम् धातु के बारे मे पढा और उसका प्रयोग सीखा। इस पाठ मे हम कुछ और धातुओं का उदाहरण लेकर वाक्य बनाएँगे। नीचे दी गई तालिका मे धातु और उसका (उत्तम पुरुष – एकवचन), (प्रथम पुरुष – एकवचन) में प्रयोग करना दिखाया गया है। इन को पढें ओर व्यक्तिगत शब्दावली(Vocabulary) या परिभाषिकी(Vocabulary) में उतारें।

    धातु
    उत्तम पुरुष – एकवचन
    प्रथम पुरुष – एकवचन
    वद्
    वदामि – मैं बोलता हूँ।
    वदति – वह बोलता है।
    पठ्
    पठामि – मैं पढता हूँ।
    पठति – वह पढता है।
    खाद्
    खादामि – मै खाता हूँ।
    खादति – वह खाता है।
    लिख्
    लिखामि – मैं लिखता हूँ।
    लिखति – वह लिखता है।
    हस्
    हसामि – मैं हसता हूँ।
    हसति – वह हसता है।
    रक्ष्
    रक्षामि – मैं रक्षा करता हूँ।
    रक्षति – वह रक्षा करता है।
    नम्
    नमामि – मैं नमता हूँ।
    नमति – वह नमता है।
    पा (पिब)
    पिबामि – मैं पीता हूँ।
    पिबति – वह पीता है।
    दृश् (पश्य)
    पश्यामि – मैं देखता हूँ।
    पश्यति – वह देखता है।
    नीचे दी गई तालिका में कुछ ओर वाक्य सिखाए गऐ हैं। यह वाक्य उपर दी गई धातुओं के इसतेमाल करके ही बनाए गए हैं। आप खुद भी एसे ही क्रमरहित वाक्य बनाने का प्रयास करें। यह करने से आपकी संस्कृत भाषा पर पकड़ मज़बूत होगी।
    संस्कृत
    हिन्दी
    त्वम् वदसि
    तुम बोलते हो।
    तै वदन्ति
    वह सब बोलते है।
    सा वदति
    वह बोलती है।
    युयम् वदथ
    तुम सब बोलते हो।
    त्वम् पठसि
    तुम पढते हो।
    युवाम् पठथः
    तुम दोनो पढते हो।
    ते पठतः
    वह दोनो पढतीं हैं। (स्त्रीलिङ्ग)
    युयम् पठथ
    तुम सब पढते हो।
    तत् खादति
    वह खाता है। (नपुसंकलिङ्ग)
    तानि खादन्ति
    वह सब खातें हैं। (नपुसंकलिङ्ग)
    वयम् लिखामः
    हम सब लिखते हैं।
    आवाम् लिखावः
    हम दोनो लिखते हैं।
    ते हसन्ति
    वह सब हसते हैं।
    ताः हसन्ति
    वह सब हंसती हैं।(स्त्रीलिङ्ग)
    सः रक्षति
    वह रक्षा करता है।
    युयम् रक्षथ
    तुम सब रक्षा करते हो।
    तानि रक्षन्ति
    वह सब रक्षा करते हैं। (नपुसंकलिङ्ग)
    त्वम् रक्षसि
    तुम रक्षा करते हो।
    आवाम् नामावः
    हम दोनो नमते हैं।
    युवाम् नमथः
    तुम दोनो नमते हो।
    सा पिबति
    वह पीती है। (स्त्रीलिङ्ग)
    ते पिबतः
    वह दोनो पीती हैं।
    तानि पश्यन्ति
    वह सब देखते है। (नपुसंकलिङ्ग)
    त्त् पश्यति
    वह देखता है। (नपुसंकलिङ्ग)
    इसी तरह हम कुछ – कुछ धातुओं को लेकर वाक्य भी बनाते जाएँगे और नए शब्द भी सीखते जाएँगे। निरंतर अभ्यास करें चाहे हर दिन कम सम्य के लिए ही, ध्यान रहे कि किसी भी भाषा के शुरुवात मे आपको रोज़ अभ्यास करना होगा, अगर ज्यादा अन्तराल तक अभ्यास ना किया गया तो आप सब भूल जाएँगे, और फिर से शुरू से शुरुवात करनी होगी। ध्यान रहे कि मेहनत का फल मीठा होता है।

संस्कृत पाठ 3

गम् (Go) लट् लकार (Present Tense)
पुरुष
एकवचन
द्विवचन
बहुवचन
प्रथम
गच्छति
गच्छतः
गच्छन्ति
मध्यम
गच्छसि
गच्छथः
गच्छथ
उत्तम
गच्छामि
गच्छावः
गच्छामः
पुरुष
एकवचन
द्विवचन
बहुवचन
प्रथम
सः (पु॰)
सा (स्त्री॰)
तत् (न॰)
तौ (पु॰)
ते (स्त्री॰)
ते (न॰)
ते (पु॰)
ताः (स्त्री॰)
तानि (न॰)
मध्यम
त्वम्
युवाम्
युयम्
उत्तम
अहम्
आवाम्
वयम्
गम् धातु– गम् एक धातु है। धातु को आप एक मूल शब्द की तरह समझिए। इस एक गम् शब्द से बहुत सारे शब्द बनाए जा सकते हैं। जैसे गच्छामि, गच्छसि, गच्छति, आच्छामि आदि। ये सब शब्द धातु के पहले उपसर्ग (Prefix) और प्रत्यय (Suffix) लगाने से बने हैं। इसी प्रकार हम दो या दो से अधिक धातुओं को मिलाकर और फिर उपसर्ग और प्रत्यय लगाकर अनेकोंअनेक शब्द बना सकते हैं। फिलहाल के लिए इस स्पष्टीकरण को समझें, धातु के ऊपर हम फिर विसतार से चर्चा करेंगे।

वचन

संस्कृत वाक्य बनाने से पहले हम एक बार वचनो को देखते हैं।
एकवचन
जब बात 1 जन या चीज़ कि की जा रही हो तो एकवचन का प्रयोग किया जाता है। जैसे वह जाता है।“ , “ यह खाता है।“ , “ बालिका पढती है।“ , “ गाड़ी चलती है।“ 
द्विवचन
जब बात 2 जनो या चीज़ों कि की जा रही हो तो द्विवचन का प्रयोग किया जाता है। जैसे दो लोग जाते हैं।“ , “ दो लोग खाते हैं।“ , “ दो बालिका पढती हैं।“ , “ दो गाड़ियाँ चलती हैं।“ 
तौ द्विवचन है, यह 2 का अभिप्राय प्रकट करता है। यह प्रथम पुरुष के लिए प्रयोग किया जाता है। तौ गच्छतः अर्थात वह दोनो जाते हैं।
बहुवचन
जब बात 2 से अधिक जनो या चीज़ों कि की जा रही हो तो बहुवचन का प्रयोग किया जाता है। जैसे बहुत लोग जाते हैं।“ , “ बहुत लोग खाते हैं।“ , “ बहुत बालिका पढती हैं।“ , “ बहुत गाड़ियाँ चलती हैं।“ 
ते बहुवचन है, यह 2 से अधिक का अभिप्राय प्रकट करता है। यह प्रथम पुरुष के लिए प्रयोग किया जाता है। ते गच्छतः अर्थात वह सब जाते हैं।

संस्कृत वाक्य

एक बर फिर पिछले पाठ की तरह ऊपर की तालिकाओं को देखकर रंग से रंग मिलाइए।
आवां गच्छावः हम दो जाते हैं। आवां और गच्छावः दोनो ही द्विवचनऔर उत्तम पुरुष मे आते हैं। (उपर की तालिकाओं को देखें।) सर्वनाम और क्रिया, वचन और पुरुष दोनो एक दूसरे के लिए संगत या अनुकूल होने चाहिएँ।
वयं गच्छामः हम सब जाते हैं। यह दोनो वयं और गच्छामः बहुवचनहैं।
युवां गच्छथः तुम दोनो जाते हो।
युयं गच्छथ तुम सब जाते हो।
तौ गच्छतः तुम दोनो (पुलिङ्ग) जाते हो।
ते गच्छतः तुम दोनो (स्त्रीलिङ्ग / नपुसंकलिङ्ग) जाते हो। उपर की तालिकाओं में देखें कि तेदोनो स्त्रीलिङ्ग और नपुसंकलिङ्ग में द्विवचन के लिए इसतेमाल होता है। या बहुवचन में पुलिङ्ग के लिए भी इसतेमाल होता है।
ते गच्छन्ति वह सब(पुलिङ्ग) जाते हैं।
ताः गच्छन्ति वह सब (स्त्रीलिङ्ग) जातीं हैं।
तानि गच्छन्ति वह सब(नपुसंकलिङ्ग) जाते हैं

संस्कृत पाठ 2


गम् (Go) लट् लकार (Present Tense)
पुरुष
एकवचन
द्विवचन
बहुवचन
प्रथम
गच्छति
मध्यम
गच्छसि
उत्तम
गच्छामि
पुरुष
एकवचन
दिव्वचन
बहुवचन
प्रथम
सः (पु॰)
सा (स्त्री॰)
तत् (न॰)
मध्यम
त्वम्
उत्तम
अहम्
गम् धातु – गम् एक धातु है। धातु को आप एक मूल शब्द की तरह समझिए। इस एक गम् शब्द से बहुत सारे शब्द बनाए जा सकते हैं। जैसे गच्छामिगच्छसिगच्छतिआच्छामि आदि। ये सब शब्द धातु के पहले उपसर्ग (Prefix) और प्रत्यय (Suffix) लगाने से बने हैं। इसी प्रकार हम दो या दो से अधिक धातुओं को मिलाकर और फिर उपसर्ग और प्रत्यय लगाकर अनेकोंअनेक शब्द बना सकते हैं। फिलहाल के लिए इस स्पष्टीकरण को समझें, धातु के ऊपर हम फिर विसतार से चर्चा करेंगे।

पुरुष
संस्कृत वाक्य बनाने से पहले मैं आपको उत्तम मध्यम और प्रथम पुरुष की जानकारी देना चाहता हूँ। 

1. प्रथम पुरुष
जब श्रोता के अतिरिक्त किसी अन्य पुरुष के लिए बात करी जा रही हो तो उसे प्रथम पुरुष कहते हैं। जैसे- वहवेउसनेयहयेइसनेआदि। जैसे – वह लडका जा रहा हैवह 2 चीज़े वहाँ पड़ी हैंउसन सब ने हाथ में फल लिए हुएँ हैं।
2. मध्यम पुरुष
जब बोलने वाला श्रोता के लिए बात कर रहा होउसे मध्यम पुरुष कहते हैं। जैसे – तूतुमतुझेतुम्हारा आदि। जैसे – तुम क्या करते होतुम कहाँ जाते होतुम्हारा क्या नाम हैतुम दोनो क्या कर रहे होतुम सब भागते हो।
3. उत्तम पुरुष
जब बोलने वाला अपने लिए बोल रहा हो उसे उत्तम पुरुष कहते है। जैसे – मैंहममुझेहमारा आदि। जैसे – मैं खाता हूँमैं वहाँ जाता हूँमैं सोता हूँहम सब लिखते हैंहम दोनो खुश हैं।
संस्कृत वाक्य
हमने पिछले पाठ मे सीखा था कि “अहम् गच्छामि” का मतलब मै जाता हूँ” है। आप ऊपर की तालिकाँओ (Tables) मै देखें कि दोनों (अहम्” और गच्छामि) ही शब्द उत्तम पुरुष कि श्रेणि में आते हैं (रंग से रंग मिलाइए जनाब)। उत्तम पुरुष को अग्रेंज़ी में First Person भी कहते हैं।
नीचे दिए गए वाक्यों को ध्यान से पढें।
1) अहं गच्छामि
2) त्वं गच्छसि
3) सः  गच्छति
4) सा गच्छति
5) तत् गच्छति
स्पष्टीकरण
1) अहं गच्छामि
मै जाता हूँ।
2) त्वं गच्छसि
त्वं अर्थात तू , तुम या आप। गच्छसि अर्थात तू जाता है। एक बार फिर ऊपर की तालिकाँओ में देखें कि दोनो (“ त्वं ” और “ गच्छसि ) ही मध्यम पुरुष की श्रेणि मे आते है। आप मध्यम पुरुष (Second Person) का प्रयोग अपने सम्मुख व्यक्ति के लिए करते है। स्वयं लिए “अहं का प्रयोग करें।
यह भी ध्यान रहे कि उत्तम पुरुष क्रिया (Verb) को उत्तम पुरुष सर्वनामसंज्ञा  (Pronoun/Noun) के साथ ही प्रयोग करें, यानि
गलत
सही
अहं गच्छसि
अहं गच्छामि
त्वं गच्छामि
त्वं गच्छसि
3) सः गच्छति
सः” (He) अर्थात वह या वो। “गच्छति” अर्थात “वह जाता है सः को पुलिङ्ग के लिए ही उपयोग किया जाता है। कोई लडका या आदमी जाता हो तो ही आप सः  गच्छति का उपयोग कर सकते हैं।
4) सा गच्छति
स्त्रीलिङ्ग के लिए सा (She) का प्रयोग किया जाता है। सा गच्छति अर्थात वह जाती है।
5) तत् गच्छति
नपुसंकलिङ्ग के लिए तत् (It) का उपयोग किया जाता है। तत् गच्छति।
 इस पाठ मे हमने केवल एकवचन पर ध्यान केन्द्रित किया। अगले पाठ मे हम द्विवचन और बहुवचन पर गौर करेंगें।

संस्कृत पाठ 1

प्रथम पाठ यानि की पहला पाठ। इस पाठ से आपका संस्कृत से पहली बार साक्षात्कार/भेंट होगी।

इस पाठ में मैं कुछ संस्कृत के वाक्य और उनका हिन्दी मे मतलब बताऊँगा। इन वाक्यों के माध्यम से आप संस्कृत के पहले शब्द सीखेगें। तो फिर बिना विल्मब किए शुरुवात करते हैं।
संस्कृत वाक्य
संस्कृत और उनके हिन्दी समतुल्य वाक्यों को गौर से देखें और पढें।
संस्कृत हिन्दी
१) अहं रुपा। मैं रुपा।
२) अहं चित्रा। मैं चित्रा।
३) अहं गच्छामि। मैं जाता हूँ।
४) अहं खादामि। मैं खाता हूँ।
५) गच्छामि। मैं जाता हूँ।
६) खादामि। मैं खाता हूँ।
७) अहं वदामि। मैं बोलता हूँ।
८) अहं पठामि। मैं पढता हूँ।
९) वदामि। मैं बोलता हूँ।
१०) पठामि। मैं पढता हूँ।
अहम् या अहं

अहम् या अहं संस्कृत में मैं के लिए इसतेमाल किया जाता है। इसलिए अहं रुपा” (वाक्य १) बन गया मैं रुपा औरअहं चित्रा” (वाक्य२) बन गयामैं चित्रा
गच्छामि

मैं जाता हूँ गच्छामि अथवा अहं गच्छामि अर्थात मैं जाता हूँ। अगर आप ध्यान से पढ रहें हैं तो आपने अवश्य सोचा होगा कि अगर गच्छामि का मतलब हैं तो अहं की जरुरत नहीं है। तो आपने बिलकुल सही सोचा है। अगर आप खाली गच्छामि बोलेगें तो भी उसका अर्थ मैं जाता हूँ ही होगा।पर एसा क्यूँ?– इसका खुलासा अगले पाठों में होगा।

खादामि
खादामि मतलब मैं खाता हूँ। जैसे गच्छामि अथवा अहं गच्छामि अर्थात मैं जाता हूँ वैसे ही खादामि अथवा अहं खादामि अर्थात मैं खाता हूँ। तो यहाँ भी अहं की ज़रुरत नहीं है।
वदामि
वदामि अथवा अहं वदामि अर्थात मैं बोलता हूँ।
पठामि
पठामि अथवा अहं पठामि अर्थात मैं पढता हूँ।

Sanskrit Varnamala

हम हिन्दी की वर्णमाला से शुरुवात करते हैं। हिन्दी की वर्णमाला को पूरी तरह से जानना आवश्यक है। आजकल ज्यादातर विघालयों मे पुरी वर्णमाला नहीं सिखाई जाती, कुछ अक्षर छोड दिए जाते है, पर मैं इस ब्लाग पर पुरी वर्णमाला की जानकारी दूगाँ ।

हिन्दी वर्णमाला स्वर और व्यञ्जन से मिलकर बनी है।

स्वर

स्वर अपने आप मे पूरे होते हैं। उन्हें उच्चारण किसी और अक्षर की जरूरत नहीं होती। हिन्दीं वर्णमाला में 16 स्वर हैं।

 अ  लृ  ॡ  ए  ऐ  ओ  औ  अं  अः

व्यञ्जन

व्यञ्जन अपने आप में पूरे नहीं होते। उनके उच्चारण के लिए स्वर की आवश्यकता होती है। हिन्दीं वर्णमाला में 35 व्यञ्जन हैं।

जैसे

क = क् + अ (अ से मिलकर पूरा क बनता है)

कण्ठय Gutturals

 क्

 ख्

 ग्

 घ्

 ङ्

तालव्य Palatals

 च्

 छ्

 ज्

 झ्

 ञ्

मूर्धन्य Linguals

 ट्

 ठ्

 ड्

 ढ्

 ण्

दन्तय Dentals

 त्

 थ्

 द्

 ध्

 न्

ओष्ठय Labials

 प्

फ्

ब्

भ्

म्

अन्तःस्थ Semi Vowel

 य्

र्

ल्

व्

Sibilant

श्

ष्

स्

Aspirate

ह्

इसके इलावा 3 प्रकार के ॐ होते है।

संख्याएँ

 0
    २  ३  ४  ५  ६  ७  ८  ९ 

अनुस्वार  अं

अनुस्वार को म् की जगह प्रयोग मे लाया जाता है। जैसे अहं या अहम्।

विसर्ग अः

विसर्ग का उच्चारण कैसे करें – विसर्ग (अः) उससे पहले अक्षर की मात्रा की तरह बोला जाता है। रामः शब्द मे विसर्ग म के बाद आता है और म शब्द म् और अ की मात्रा से मिलकर बना है। इसलिए ह के बाद अ की मात्रा लगाएँ। तो रामः का उच्चारण रामह होगा। नीचे दिए गए उदाहरणो को देखे।

 शब्द  उच्चारण
 रामः  रामह
 रामाः  रामाहा
 हरिः  हरिहि
 गुरुः  गुरुहु

हलन्त्

जब भी हलन्त् किसी अक्षर के नीचे लगता है तो उस अक्षर के उच्चारण की सीमा आधी कर देनी चाहिए। जैसे कप्(Cup) कप(Cupa)।

मात्रा

अब हम स्वर संबंधी मात्राओं को देखेंगे। स्वरों की मात्रा व्यञ्जनों पर उपयोग की जाती है। (अगर रोज़-मर्रा की भाषा मे बोलें तो व्यञ्जनों क उच्चारण बदलने के लिए उपयोग में लाई जाती है।

 स्वर
 मात्रा ि
उदाहरण का कि की कु कू कृ के कै को कौ

संयुक्त वयञ्जन 

संयुक्त वयञ्जन दो या दो से अधिक वयञ्जन से मिलकर बनते हैं। नीचे दिए गए उदाहरणो को देखें।

क्ष = क् +
क्त = क् +
ग्र = + र्
श्र = श् +
ह्य = ह् +
ह्म = ह् +

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